दिल्ली में बसंत तो हर साल आता है
पर इस बार बहुत सालों बाद
हमारे आँगन की अमराई महकी है
उसी रंग उसी गंध में सराबोर
वो सड़क जो तुम तक पहुँचती थी
नीम की बौर से ढकी है और कुछ दूर
चटख नारंगी सेमल धधक रहा है
तुम्हारे घर की दीवार से सटे टेसू ने यादें
फिर रंग दीं हैं और मन फिर उन्ही
महुआ की रातों में घुल गया है
वहीँ लोदी गार्डन में जहाँ मेरा फेवरेट बेंच
कचनार की गुलाबी महक में डूबा हुआ है
वहीँ दबे पाँव न जाने कब उस गुलाबी बोगनविला ने
डक पोंड के पास वाले तुम्हारे पसंदीदा बेंच को
क्लाद मोने की पेंटिंग में बदल दिया है
दिल्ली में बसंत बिलकुल तुम्हारे प्यार जैसा है –
क्षणिक – अविस्मरणीय