वो सराब था के हकीकत
मालूम नहीं
मेरा जुनून था या के कोई ख्वाब
मालूम नहीं
सेहरा की तपती रेत पर थे
उसके क़दमों के निशां
और फलक पर आंच थी उसकी
एक खुशबू सी हवा में थी
दिल में एक याद थी उसकी
अश्कों की तरह बह निकली थी रेत
उठ्ठा दर्द का था एक गुबार
पाँव अंगार हुए थे फिर भी
उसके दीदार का था इन्तेज़ार
दश्त दर दश्त सफ़र करके
आ पहुचे थे उस तक
और फिर ओझल हुआ
आखों से तसव्वुर उसका
है उम्मीद के बरसेगा कोई अब्र
लिए उसकी चाहत की भीनी सी फुहार
और कर जायेगा मुझे
उसके इश्क की बारिश से
फिर इक बार सराबोर
और दे जायेगा यकीन
उसके होने का
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Lovely write, ma’am 🙂
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चाहत की तिश्न्गी ज़िन्दा हो गई है , आप के शब्दों में ,उम्मीद को ज़िन्दा कर रही है आपकी ये रचना.सुन्दर आशापूर्ण भावो को apt शब्दों में पिरोया है.
“नज़दीकींयों के सच ” पर भाव पूर्ण टिप्प्णी के लिये धन्यवाद,
“सच में” पर आतें रहें.Happy Blogging.
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wah tikuli, sab pata hote hue bhi maloom nahi kitni gaherai se anjaan shabdo ko pahechaan di…
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oh wow lovely..touche tikuli 🙂
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shukriya doston .. aaj phir likhne ki chaht huyi hai ..aap sab ka yahan aane aur mujhe badhava dene ke liye tahe dil e shukriya
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ya this is nice poem for me.
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Ek alag kashish…..
Woh sarab nahi ek hakikat hai !!!
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with love
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with love nlots of……………..
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thanxxxxxxxxxxxxxxx
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